लोग हतप्रभ खड़े मुँह बनाए हुए
तेज़ रफ्तार है आज ज़्यादा हवा
पेड़ शाखों का सिगनल उठाए हुए
इसके बस्ते में दुनिया का कितना वज़न
कल का बच्चा कमर है झुकाये हुए
कुछ रूमाले हिलीं कुछ निगाहें भरीं
रेल चल दी कहानी छुपाये हुए
ये जो झंडा उठाए खड़ी भीड़ है
लोग शामिल हैं इसमें सताये हुए।
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