पर्वत-समतल, हरियल-बंजर, खाईं और समंदर है
निगल रहा है धीरे-धीरे हसीं-खुशी का हर लमहा
यह कोई बेचैन समय है या फिर कोई अजगर है
प्रातः के बारे में यह भी एक कल्पना है प्यारी
चंदा की चाँदनी प्रश्न थी यह सूरज का उत्तर है
वैसे तो दुनिया को अक्सर भला-बुरा कह लेता हूँ
लेकिन मेरा मन कहता है सब कुछ केवल सुंदर है
ऐसे ही कवि नहीं हुआ है उसने पीड़ा झेली है
कभी सजल है कभी अनल है इसीलिए मन उर्वर है