Monday, December 13, 2010

गजल 1

दिलों की मैल धोना चाहते हैं धो नहीं पाते
बहुत से लोग रोना चाहते हैं रो नहीं पाते
ख़यालों की बदौलत ही कोई कविता नहीं उगती
अगर एहसास की धरती पे उसको बो नहीं पाते
ये रातें अपना दुखड़ा लेके आकर बैठ जाती हैं
थकन से चूर रहते हैं मगर हम सो नहीं पाते
तुम्हारी याद अक्सर माँगती रहती है तन्हाई
गमों की भीड़ इतनी है कि तन्हा हो नहीं पाते

No comments:

Post a Comment